विक्षेप और शून्य विक्षेप विधि में अन्तर

विक्षेप और शून्य विक्षेप विधि में अन्तर

विक्षेप और शून्य विक्षेप विधि में अन्तर

विक्षेप विधि –

1. इस विधि में सूई का विक्षेप ज्ञात कर चुंबकीय आघूर्णों का अनुपात ज्ञात किया जाता है ।

2. इस विधि में ज्ञात चुंबकीय आघूर्णों का अनुपात अधिक यथार्थ नहीं होता।

3. इस विधि में छोटे चुंबकों के लिए निम्न सूत्र प्रयुक्त करते हैं –

M1 /M2 = tan θ1/tan θ2

शून्य विक्षेप विधि –

1. इस विधि में दोनों चुम्बकों के मध्य बिंदु से सुई की दूरियां ज्ञात कर चुंबकीय आघूर्णों का अनुपात ज्ञात किया जाता है ।

2. इस विधि से ज्ञात चुंबकीय आघूर्णों का अनुपात अधिक यथार्थ होता है।

3. इस विधि में छोटे चुंबकओं के लिए निम्न सूत्र प्रयुक्त करते हैं –

M1 /M2 = d13 / d23

विक्षेप विधि से शून्य विधि अधिक श्रेष्ठ है-

1. शून्य विक्षेप विधि में केवल दूरियां मापी जाती है, जिन्हें विक्षेप की तुलना में अधिक शुद्धतापूर्वक एवं आसानी से माप सकते हैं ।

2. चूंकि शून्य विक्षेप विधि में सुई में कोई विशेष नोट नहीं करते हैं , सूई के घर्षण के कारण होने वाली त्रुटी का भी निराकरण हो जाता है।

विक्षेप चुंबकत्वमापी में चुंबकीय सुई को छोटा तथा संकेतक को लंबा रखने का कारण –

सूई के केंद्र पर सीमित क्षेत्र में ही चुंबकीय क्षेत्र एकसमान रहता है ।

अतः यदि सुई  छोटी है तभी वह एकसमान क्षेत्र में रह सकेगी और स्पर्शज्या नियमानुसार संतुलित रह सकेगी।

संकेतक को लम्बा रखा जाता है ताकि पैमाने पर सूई का विक्षेप शुद्धतापूर्णक पढ़ा जा सके ।

संकेतक एल्युमिनियम का बनाया जाता है, क्योंकि वह हल्का तथा अचुंबकीय होता है।

आवेशों का संरक्षण किसे कहते हैं

क्लोरीन के उपयोग (Uses of chlorine)

सल्फ्यूरिक अम्ल के उपयोग –

लैन्थेनाइड का उपयोग –

पोटैशियम परमैंगनेट (KMnO₄) के उपयोग –

चुम्बकत्व किसे कहते हैं

चुम्बकीय आघूर्ण (Magnetic Moment)

अक्षीय स्थिति (End on Position)

परिनालिका के कारण चुम्बकीय क्षेत्र

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Author: educationallof

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